सम्राट अकबर और अंग्रेज भी नही बुझा सके थे मां ज्वाला देवी की ज्वाला, हारकर अकबर ने चढ़ाया था स्वर्ण छत्र

हथुआ न्यूज़ : अपने देश मे ऐसी मान्यता है कि मातारानी भगवती के 52 शक्तिपीठ हैं और उन्ही में शामिल है मां ज्वाला देवी मंदिर। हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। ज्वाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है ऐसी मान्यता है कि सुख और समृद्धि प्रदान करने वाले पावन शक्तिपीठों में से एक मां ज्वालामुखी का दिव्य धाम है।
इस पावन शक्तिपीठ को पवित्र और प्रचंड स्थान माना गया है। दरअसल शक्तिपीठ मां ज्वाला देवी के बारे में यह मान्यता है कि माता सती की अधजली जिह्वा यहां पर गिरी थी। जिसे कालांतर में लोगों ने मां ज्वालादेवी कहकर पुकारा जाता है और साधना की जाती है। माता के इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। कहा जाता है यहां पर निरंतर निकलने वाली अग्नि को ही मां ज्वालादेवी का प्राकट्य माना जाता है।
यहां पर शक्ति के नौ स्वरूपों में नौ ज्वालाएं हमेशा जलती रहती हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि ज्वाला देवी के इस चमत्कारिक शक्त्पिीठ में सदियों से पावन ज्वाला जल रही है, जो किसी भी प्रकार से बुझाने पर नहीं बुझती है। दरसल ऐसी मान्यता है कि मुगलकाल में सम्राट अकबर इस मंदिर में आया था। और अंधविश्वास मानकर वो पहले तो भगवती श्री ज्वालाजी की पवित्र ज्योति को बुझाने की तमाम कोशिश की, लेकिन जब अंत में असफल रहा, तो उसने भगवती के चरणों में स्वर्ण छत्र चढ़ाया।
कहा जाता है मां ज्वालादेवी का यह मंदिर काली धार नाम की एक पर्वत श्रृंखला पर स्थित है। इस मंदिर के ऊपर सुनहरे गुंबद और ऊंची चोटियां बनी है। इसके अलावा मंदिर के अंदर तीन फीट गहरा और चौकोर गड्ढा है, जिसके चारों ओर रास्ता बना हुआ है। वहीं मां के दरबार के ठीक सामने है सेजा भवन, जो कि भगवती ज्वाला देवी का शयन कक्ष है। इस भवन में प्रवेश करते ही बीचोंबीच माता का पलंग ( सिंहासन ) दिखाई पड़ता है। ज्वाला देवी शक्तिपीठ में ज्वाला निरंतर जलती रहती है।

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