
भैयादूज आज मना रही है बहने, भाइयो को मिलती बै चिरंजीवी होने का आशीर्वाद
हथुआ/गोपालगंज (हथुआ न्यूज़): भैया दूज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाला हिन्दू धर्म का एक पवित्र पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन बहने सामुहिक रूप से एक जगह इकट्ठी होकर गोबर से गोवर्धन की आकृतियां बनाती है। फिर उन आकृतियों की पूजा अर्चना कर उसे मूसल से कूटती है। ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन कुटाई के बाद से सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते है। इस बार यह पर्व तिथियों के टूट-भांग के कारण 26 और 27 अक्टूबर को मनाया गया। भारतीय समाज में परिवार सबसे अहम पहलू है। भारतीय
परिवारों के एकता यहां के नैतिक मूल्यों पर टिकी होती है। इन नैतिक मूल्यों को मजबूती देने के लिए वैसे तो हमारे संस्कार ही काफ़ी हैं लेकिन फिर भी इसे अतिरिक्त मजबूती देने के लिए बने है हमारे तीज- त्यौहार। इन्हीं त्यौहारों में भाई-बहन के आत्मीय रिश्ते को दर्शाता एक त्यौहार है भैया दूज।
हिन्दू समाज में भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक भैया दूज (भाई-टीका) पर्व काफ़ी महत्वपूर्ण माना जाता है। भाई-बहन के पवित्र रिश्तों के प्रतीक के पर्व को हिन्दू समुदाय के सभी वर्ग के लोग हर्ष उल्लास से मनाते हैं। इस पर्व पर जहां बहनें अपने भाई की दीर्घायु व सुख समृद्धि की कामना करती हैं तो वहीं भाई भी सगुन के रूप में अपनी बहन को उपहार स्वरूप कुछ भेंट देने से नहीं चूकते।
कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाए जाने वाले इस त्यौहार के पीछे की ऐतिहासिक कथा भी निराली है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य पुत्री यमुना ने अपने भाई यमराज को आमंत्रित किया कि वह उसके घर आ कर भोजन ग्रहण करें, किन्तु व्यस्तता के कारण यमराज उनका आग्रह टाल जाते थे। कहते हैं कि कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज ने यमुना के घर जा कर उनका सत्कार ग्रहण किया और भोजन भी किया। यमराज ने बहन को वर दिया कि जो भी इस दिन यमुना में स्नान करके बहन के घर जा कर श्रद्धापूर्वक उसका सत्कार ग्रहण करेगा उसे व उसकी बहन को यम का भय नहीं होगा। तभी से लोक में यह पर्व यम द्वितीया के नाम से भी प्रसिद्ध हो गया। इस दिन कायस्थ लोग विधि-विधान से चित्रगुप्त भगवान का पूजन करते है और अपनी बहन के हाथों ‘बजरी’ के रूप में प्रसाद ग्रहण करते है। बहने उन्हें चिरंजीवी होने का आशीर्वाद देती है।